hai kya jo kas ke bandhiye meri bala Dare

hai kya jo kas ke bandhiye meri bala dare
kya jaanta nahin hun tumhaari kamar ko main

what is it that's drawn so tight, calamity may care
as to the truth about your waist am i so unaware?

ग़ालिब के इस शे’र में ग़ज़ब का विनोद पाया जाता है। ग़ालिब की शायरी का एक दिलचस्प पहलू विनोदी अभिव्यक्ति भी है। उन्होंने जगह जगह अपने विनोद के जलवे दिखाए हैं। इस शे’र के विषय पर कुछ टिप्पणी करने से पहले इसके उद्देश्यों को जानना ज़रूरी है। वस्तुतः शे’र के विषय के दो पहलू हैं। एक यह कि ग़ालिब का महबूब उन्हें नष्ट करने के लिए कमर बाँधने की धमकी देता है। दूसरा यह कि महबूब की कमर नज़ाकत की वजह से इतनी पतली है कि ग़ालिब उसे लगभग भ्रामक मानते हैं।
पहले मिसरे में “है क्या” के मायनी के दो पहलू हैं। एक यह कि ग़ालिब का महबूब जब कमर-बाँधने की धमकी देता है तो ग़ालिब उससे पूछते हैं कि क्या तुम्हारे पास कमर भी है जो तुम कस के बाँधने जा रहे हो। दूसरा ये कि तुम्हारी कमर इतनी पतली है कि उसे बाँधा ही नहीं जा सकता। अगर शे’र में “मेरी बला डरे” का दावा नहीं होता तो विश्वास यही होता है ग़ालिब अपने महबूब की कमर की कोमलता की प्रशंसा कर रहे हैं। मगर “मेरी भला डरे” से तुरंत ज़ेहन उस पहलू की तरफ़ जाता है कि ग़ालिब के महबूब ने उसे ख़त्म करने के लिए कमर बाँधने की धमकी दी है। उस धमकी के जवाब में ग़ालिब बहुत ही विनोदी ढंग से जवाब देता है कि क्या तुम्हारे पास कमर नाम की भी कोई चीज़ है। और ये कि क्या मैं इस बात की जानकारी नहीं है कि तुम्हारी कमर नज़ाकत की वजह से इतनी पतली है कि उसे बाँधा ही नहीं जा सकता।


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