है शाम-ए-अवध गेसू-ए-दिलदार का परतव By Sher << कभी भूले से भी अब याद भी ... अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ ... >> है शाम-ए-अवध गेसू-ए-दिलदार का परतव और सुब्ह-ए-बनारस है रुख़-ए-यार का परतव Share on: