है तिश्ना-लबी लेकिन हम क्यूँ उसे ज़हमत दें By Sher << रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू... याद-ए-माज़ी ग़म-ए-इमरोज़ ... >> है तिश्ना-लबी लेकिन हम क्यूँ उसे ज़हमत दें अपना ही लहू पी लें साक़ी को जगाएँ क्या Share on: