हैं पत्थरों की ज़द पे तुम्हारी गली में हम By Sher << सत्ह-ए-दरिया पर उभरने की ... मुस्कुराना कभी न रास आया >> हैं पत्थरों की ज़द पे तुम्हारी गली में हम क्या आए थे यहाँ इसी बरसात के लिए Share on: