हज़ार दर्द समेटे हुए हूँ इक दिल में By Sher << बुलबुल को बाग़बाँ से न सय... हो गए राम जो तुम ग़ैर से ... >> हज़ार दर्द समेटे हुए हूँ इक दिल में बिखर गई जो मिरी दास्ताँ तो क्या होगा Share on: