बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला By Sher << सूरज ऊँचा हो कर मेरे आँगन... हज़ार दर्द समेटे हुए हूँ ... >> बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में --- --- Share on: