हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार By Sher << रवाँ थी कोई तलब सी लहू के... तुम मिरे पास जब नहीं होते >> हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार तिरे फ़िराक़ में मरना ही क्या ज़रूरी है Share on: