हज़ार रुख़ तिरे मिलने के हैं न मिलने में By Sher << मेरा सुक़रात को पढ़ना भी ... जब कभी किसी गुल पर इक ज़र... >> हज़ार रुख़ तिरे मिलने के हैं न मिलने में किसे फ़िराक़ कहूँ और किसे विसाल कहूँ Share on: