मेरा सुक़रात को पढ़ना भी क़यामत ठहरा By Sher << शिकस्त खा चुके हैं हम मगर... हज़ार रुख़ तिरे मिलने के ... >> मेरा सुक़रात को पढ़ना भी क़यामत ठहरा ज़हर दे कर मिरे अपनों ने मुझे मार दिया Share on: