हम आए रोज़ नया ख़्वाब देखते हैं मगर By Sher << दहर में इक तिरे सिवा क्या... तिरे ख़िलाफ़ किया जब भी ए... >> हम आए रोज़ नया ख़्वाब देखते हैं मगर ये लोग वो नहीं जो ख़्वाब से बहल जाएँ Share on: