हमारा इंतिख़ाब अच्छा नहीं ऐ दिल तो फिर तू ही By दिल, Sher << दिल वो सहरा है जहाँ हसरत-... अभी तो काँटों-भरी झाड़ियो... >> हमारा इंतिख़ाब अच्छा नहीं ऐ दिल तो फिर तू ही ख़याल-ए-यार से बेहतर कोई मेहमान पैदा कर Share on: