हमारा जिस्म तो फिर जिस्म ठहरा By Sher << हुसैन आज भी क़ाएम है अपनी... इक यक़ीं-परवर गुमाँ और इक... >> हमारा जिस्म तो फिर जिस्म ठहरा दराड़ें ऐब हैं दीवार में भी Share on: