हमें दुनिया फ़क़त काग़ज़ का इक टुकड़ा समझती है By Sher << आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-ना... कुछ हवा का भी हाथ था वर्न... >> हमें दुनिया फ़क़त काग़ज़ का इक टुकड़ा समझती है पतंगों में अगर ढल जाएँ हम तो आसमाँ छू लें Share on: