हर आदमी वहाँ मसरूफ़ क़हक़हों में था By Sher << इस लहजे से बात नहीं बन पा... एक मुद्दत से ये मंज़र नही... >> हर आदमी वहाँ मसरूफ़ क़हक़हों में था ये आँसुओं की कहानी किसे सुनाते हम Share on: