एक मुद्दत से ये मंज़र नहीं बदला 'तारिक़' By Sher << हर आदमी वहाँ मसरूफ़ क़हक़... अजब ग़रीबी के आलम में मर ... >> एक मुद्दत से ये मंज़र नहीं बदला 'तारिक़' वक़्त उस पार है ठहरा हुआ इस पार हैं हम Share on: