हर इक मकाँ में गुज़रगाह-ए-ख़्वाब है लेकिन By Sher << इक्का-दुक्का सदा-ए-ज़ंजीर न जाने रूठ के बैठा है दिल... >> हर इक मकाँ में गुज़रगाह-ए-ख़्वाब है लेकिन अगर नहीं तो नहीं इश्क़ के जनाब में ख़्वाब Share on: