हर इक रिश्ता बिखरा बिखरा क्यूँ लगता है By Sher << ख़्वाब आँसू एहतजाजी ज़िंद... मैं जो चुप था हमा-तन-गोश ... >> हर इक रिश्ता बिखरा बिखरा क्यूँ लगता है इस दुनिया में सब कुछ झूटा क्यूँ लगता है Share on: