मैं जो चुप था हमा-तन-गोश थी बस्ती सारी By Sher << हर इक रिश्ता बिखरा बिखरा ... अज़्म-ए-मोहकम हो तो होती ... >> मैं जो चुप था हमा-तन-गोश थी बस्ती सारी अब मिरे मुँह में ज़बाँ है कोई सुनता ही नहीं Share on: