हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत है By Sher << ज़मीं पे पाँव ज़रा एहतिया... जिधर जाते हैं सब जाना उधर... >> हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत है क्या बानी-ए-इस्लाम भी ग़ारत-गर-ए-दीं था Share on: