क्या फ़िराक़ ओ फ़ैज़ से लेना था मुझ को ऐ 'नईम' By Sher << मैं अपनी रूह में उस को बस... कोई मौसम हो यही सोच के जी... >> क्या फ़िराक़ ओ फ़ैज़ से लेना था मुझ को ऐ 'नईम' मेरे आगे फ़िक्र-ओ-फ़न के कुछ नए आदाब थे Share on: