कोई मौसम हो यही सोच के जी लेते हैं By Sher << क्या फ़िराक़ ओ फ़ैज़ से ल... किसी ने डूबती सुब्हों तड़... >> कोई मौसम हो यही सोच के जी लेते हैं इक न इक रोज़ शजर ग़म का हरा तो होगा Share on: