हाथ मलते हुए आज आते हैं सब रह-गुज़रे By Sher << हिज्र में मुज़्तरिब सा हो... हशमत-ए-दुनिया की कुछ दिल ... >> हाथ मलते हुए आज आते हैं सब रह-गुज़रे जा-ए-हैरत है कि मैं क्यूँ सर-ए-बाज़ार न था Share on: