हाथों में नाज़ुकी से सँभलती नहीं जो तेग़ By Sher << काँटों से दिल लगाओ जो ता-... रात दरीचे तक आ कर रुक जात... >> हाथों में नाज़ुकी से सँभलती नहीं जो तेग़ है इस में क्या गुनाह तेरे जाँ-निसार का Share on: