हवा बाँधते हैं जो हज़रत जिनाँ की By Sher << जिस्म ऐसा घुल गया है मुझ ... पूजता हूँ कभी बुत को कभी ... >> हवा बाँधते हैं जो हज़रत जिनाँ की गली में हसीनों की आए गए हैं Share on: