जिस्म ऐसा घुल गया है मुझ मरीज़-ए-इश्क़ का By Sher << क़सम मय की मुझ बिन है मेर... हवा बाँधते हैं जो हज़रत ज... >> जिस्म ऐसा घुल गया है मुझ मरीज़-ए-इश्क़ का देख कर कहते हैं सब तावीज़ है बाज़ू नहीं Share on: