हवा-ए-ताज़ा का झोंका इधर से क्या गुज़रा By Sher << ख़ुदा करे कि खुले एक दिन ... देख कर भी न देखना उस का >> हवा-ए-ताज़ा का झोंका इधर से क्या गुज़रा गिरे पड़े हुए पत्तों में जान आ गई है Share on: