हया से हुस्न की क़ीमत दो-चंद होती है By Sher << मैं करूँ किस का नज़ारा दे... हरगिज़ न मुझ से साफ़ हुआ ... >> हया से हुस्न की क़ीमत दो-चंद होती है न हों जो आब तो मोती की आबरू क्या है Share on: