हिसार-ए-गोश-ए-समाअत की दस्तरस में कहाँ By Sher << एक ही ख़्वाब ने सारी रात ... बहुत तवील शब-ए-ग़म है क्य... >> हिसार-ए-गोश-ए-समाअत की दस्तरस में कहाँ तू वो सदा जो फ़क़त जिस्म को सुनाई दे Share on: