हम दर्द के मारे ही गिराँ-जाँ हैं वगर्ना By Sher << कल वस्ल में भी नींद न आई ... महव-ए-हैरत हूँ ख़राश-ए-दस... >> हम दर्द के मारे ही गिराँ-जाँ हैं वगर्ना जीना तिरी फ़ुर्क़त में कुछ आसाँ तो नहीं है Share on: