वाइ'ज़ो हम रिंद क्यूँ-कर काबिल-ए-जन्नत नहीं By Sher << दिल से मिटना तिरी अंगुश्त... तिरी अदा की क़सम है तिरी ... >> वाइ'ज़ो हम रिंद क्यूँ-कर काबिल-ए-जन्नत नहीं क्या गुनहगारों को मीरास-ए-पिदर मिलती नहीं Share on: