इस से बढ़ कर तिरी यादों की करूँ क्या ताज़ीम By Sher << ख़मोशी कह रही है अब ये दो... चेहरों पे ज़र-पोश अंधेरे ... >> इस से बढ़ कर तिरी यादों की करूँ क्या ताज़ीम तेरी यादों में ज़माने को भुला रक्खा है Share on: