इश्क़ का एजाज़ सज्दों में निहाँ रखता हूँ मैं By Sher << कलीसा मौलवी राहिब पुजारी शायद निकल ही आए कोई चाराग... >> इश्क़ का एजाज़ सज्दों में निहाँ रखता हूँ मैं नक़्श-ए-पा होती है पेशानी जहाँ रखता हूँ मैं Share on: