शायद निकल ही आए कोई चारागर 'फ़िगार' By Sher << इश्क़ का एजाज़ सज्दों में... हम ने मिल-जुल के गुज़ारे ... >> शायद निकल ही आए कोई चारागर 'फ़िगार' इक बार और देख सदा कर के शहर में Share on: