इसी लिए तो है ज़िंदाँ को जुस्तुजू मेरी By Sher << आठों पहर लहू में नहाया कर... जी तन में नहीं न जान बाक़... >> इसी लिए तो है ज़िंदाँ को जुस्तुजू मेरी कि मुफ़लिसी को सिखाई है सर-कशी मैं ने Share on: