इतनी बे-शर्म-ओ-हया हो गई क्यूँ दुख़्तर-ए-रज़ By Sher << पेश-ख़ेमा हैं क़यामत का य... तिरी निगह से गए खुल किवाड... >> इतनी बे-शर्म-ओ-हया हो गई क्यूँ दुख़्तर-ए-रज़ आँखें बाज़ार में यूँ उस को न मटकाना था Share on: