जाने क्या क्या ज़ुल्म परिंदे देख के आते हैं By अन्याय, परिंदा, Sher << मिरे सवाल-ए-विसाल पर तुम ... दर कुंज-ए-सदा-बंद का खोले... >> जाने क्या क्या ज़ुल्म परिंदे देख के आते हैं शाम ढले पेड़ों पर मर्सिया-ख़्वानी होती है Share on: