जब आईने दर-ओ-दीवार पर निकल आएँ By Sher << कुछ लोग थे सफ़र में मगर ह... इब्तिदा मुझ में इंतिहा मु... >> जब आईने दर-ओ-दीवार पर निकल आएँ तो शहर-ए-ज़ात में रहना भी इक क़यामत है Share on: