जब कहीं दो गज़ ज़मीं देखी ख़ुदी समझा मैं गोर By Sher << लचक है शाख़ों में जुम्बिश... चार झोंके जब चले ठंडे चमन... >> जब कहीं दो गज़ ज़मीं देखी ख़ुदी समझा मैं गोर जब नई दो चादरें देखीं कफ़न याद आ गया Share on: