जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ By Sher << जंगलों को काट कर कैसा ग़ज... जान ये सरकशी-ए-जिस्म तिरे... >> जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ तो अपने ख़्वाब की पलकें झपकने लगता हूँ Share on: