ज़ि-बस हम को निहायत शौक़ है अमरद-परस्ती का By Sher << ज़ि-बस ख़ून-ए-ग़लीज़ आँखो... ज़रा देखे कोई दैर-ओ-हरम क... >> ज़ि-बस हम को निहायत शौक़ है अमरद-परस्ती का जहाँ जावें वहाँ इक आध को हम ताक रहते हैं Share on: