ज़िंदगी भर मैं खुली छत पे खड़ी भीगा की By Sher << ज़िंदगी के सारे मौसम आ के... ज़र्द चेहरों की किताबें भ... >> ज़िंदगी भर मैं खुली छत पे खड़ी भीगा की सिर्फ़ इक लम्हा बरसता रहा सावन बन के Share on: