ज़र्द चेहरों की किताबें भी हैं कितनी मक़्बूल By Sher << ज़िंदगी भर मैं खुली छत पे... ज़मीन मोम की होती है मेरे... >> ज़र्द चेहरों की किताबें भी हैं कितनी मक़्बूल तर्जुमे उन के जहाँ भर की ज़बानों में मिले Share on: