ज़िंदगी राज़ी नहीं थी ग़म उठाने के लिए By Sher << गया क़रीब जो परवाना रह गय... वो आए जाता है कब से पर आ ... >> ज़िंदगी राज़ी नहीं थी ग़म उठाने के लिए हम चले आए यहाँ तक मुस्कुराने के लिए Share on: