ज़िंदगी वक़्त के सफ़्हों में निहाँ है साहब By Sher << देखिएगा सँभल कर आईना जल्वा ओ दिल में फ़र्क़ नह... >> ज़िंदगी वक़्त के सफ़्हों में निहाँ है साहब ये ग़ज़ल सिर्फ़ किताबों में नहीं मिलती है Share on: