जैसे दोज़ख़ की हवा खा के अभी आया हो By Sher << अश्क-बारी से ग़म-ओ-दर्द क... ग़नीमत बूझ लेवें मेरे दर्... >> जैसे दोज़ख़ की हवा खा के अभी आया हो किस क़दर वाइज़-ए-मक्कार डराता है मुझे Share on: