जैसे हो उम्र भर का असासा ग़रीब का By Sher << हल्की सी ख़लिश दिल में नि... ग़म और होता सुन के गर आते... >> जैसे हो उम्र भर का असासा ग़रीब का कुछ इस तरह से मैं ने सँभाले तुम्हारे ख़त Share on: