जैसे रेल की हर खिड़की की अपनी अपनी दुनिया है By Sher << 'अंजुम' तुम्हारा ... अच्छी सूरत भी क्या बुरी श... >> जैसे रेल की हर खिड़की की अपनी अपनी दुनिया है कुछ मंज़र तो बन नहीं पाते कुछ पीछे रह जाते हैं Share on: