ज़ख़्म के लगते ही क्या खुल गए छाती के किवाड़ By Sher << ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी का... मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी... >> ज़ख़्म के लगते ही क्या खुल गए छाती के किवाड़ आगे ये ख़ाना-ए-दिलचस्प हवा दार न था Share on: