मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता By Sher << ज़ख़्म के लगते ही क्या खु... यूँ बढ़ी साअत-ब-साअत लज़्... >> मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता उड़ा ही लेता दस्त-ए-कातिब-ए-तक़दीर से काग़ज़ Share on: