ज़ख़्म ये वस्ल के मरहम से भी शायद न भरे By Sher << सब आसान हुआ जाता है अश्क से मेरे बचे हम-साया ... >> ज़ख़्म ये वस्ल के मरहम से भी शायद न भरे हिज्र में ऐसी मिली अब के मसाफ़त हम को Share on: